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तपा-तपा कर कंचन कर दे ऐसी आग मुझे दे देना !
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सारी खुशियाँ ले लो चाहे,तन्मय राग मुझे दे देना !
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मेरे सारे खोट दोष सब ,लपटें दे दे  भस्म बना दो ,
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लिपटी रहे काय से चिर वह ,बस ऐसा वैराग्य जगा दो !
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रमते जोगी सा मन चाहे भटके द्वार-द्वार बिन टेरे ,
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तरलित निर्मल प्रीत हृदय की बाँट सकूँ ज्यों बहता पानी ,
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जो दो मैं सिर धरूं किन्तु विचलन के आकुल पल मत देना
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सारे सुख सारे सपने अपनी  झोली में चाहे रख लो,
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  ऐसी करुणा दो अंतर में रहे न कोई पीर अजानी !
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सहज भाव स्वीकार करूँ हो निर्विकार हर दान तुम्हारा,
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शाप-ताप मेरे सिर रख दो ,मुक्त रहे दुख से हर प्राणी !
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जैसा मैंने पाया उससे  बढ़ कर यह संसार दे सकूँ ,
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निभा सकूँ निस्पृह अपना व्रत बस इतनी क्षमता भर देना !
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आँसू की बरसात देखना अब तो सहा नहीं जायेगा ,
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दुख से पीड़ित गात देख कर मन को धीर नहीं आयेगा !
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इतनी दो सामर्थ्य व्यथित मन को थोड़ा विश्राम दे सकूँ 
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लाभ -हानि चक्कर पाले बिन मुक्त-मनस् उल्लास दे सकूँ
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सुख -दुख भेद न व्यापे  ऐसी लगन जगा दो अंतर्यामी ,
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और कहीं अवसन्न मनस्थिति डिगा न दे वह बल भर देना !
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ऐसी संवेदना समा दो हर मन  मन में अनुभव कर लूं
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बाँटूँ हँसी जमाने भर को अश्रु इन्हीं नयनों में भर लूं !
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हँसती हुई धरा का तल हो जग-जीवन हो चिर सुन्दरतर !
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हो प्रशान्त  निरपेक्ष-भाव से पूरी राह चलूँ  मन स्थिर !
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सिवा तुम्हारे और किसी से क्या माँगूँ मेरे घटवासी ,
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जीवन और मृत्यु की सार्थकता पा सकूँ यही वर देना !
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दो वरदान श्रमित हर मुख पर तृप्ति  भरा उल्लास छलकता
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निरउद्विग्न हृदय से  ममता ,मोह ,छोह  न्योछावर कर दो !
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अंतर्यामी ,विनती का यह सहज भाव स्वीकार करो तुम
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उसके बदले चाहे मेरी झोली अनुतापों से भर दो
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मेरे रोम-रोम में बसनेवाले मेरे चिर-विश्वासी,
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हर अँधियारा पार कर सकूँ मुझको परम दीप्त स्वर  देना !
  
 
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09:09, 28 फ़रवरी 2011 का अवतरण

तपा-तपा कर कंचन कर दे ऐसी आग मुझे दे देना !
 सारी खुशियाँ ले लो चाहे,तन्मय राग मुझे दे देना !


मेरे सारे खोट दोष सब ,लपटें दे दे भस्म बना दो ,
लिपटी रहे काय से चिर वह ,बस ऐसा वैराग्य जगा दो !
रमते जोगी सा मन चाहे भटके द्वार-द्वार बिन टेरे ,
 तरलित निर्मल प्रीत हृदय की बाँट सकूँ ज्यों बहता पानी ,
जो दो मैं सिर धरूं किन्तु विचलन के आकुल पल मत देना


सारे सुख सारे सपने अपनी झोली में चाहे रख लो,
  ऐसी करुणा दो अंतर में रहे न कोई पीर अजानी !
 सहज भाव स्वीकार करूँ हो निर्विकार हर दान तुम्हारा,
शाप-ताप मेरे सिर रख दो ,मुक्त रहे दुख से हर प्राणी !
जैसा मैंने पाया उससे बढ़ कर यह संसार दे सकूँ ,
निभा सकूँ निस्पृह अपना व्रत बस इतनी क्षमता भर देना !


आँसू की बरसात देखना अब तो सहा नहीं जायेगा ,
दुख से पीड़ित गात देख कर मन को धीर नहीं आयेगा !
इतनी दो सामर्थ्य व्यथित मन को थोड़ा विश्राम दे सकूँ
लाभ -हानि चक्कर पाले बिन मुक्त-मनस् उल्लास दे सकूँ
सुख -दुख भेद न व्यापे ऐसी लगन जगा दो अंतर्यामी ,
और कहीं अवसन्न मनस्थिति डिगा न दे वह बल भर देना !


 ऐसी संवेदना समा दो हर मन मन में अनुभव कर लूं
बाँटूँ हँसी जमाने भर को अश्रु इन्हीं नयनों में भर लूं !
हँसती हुई धरा का तल हो जग-जीवन हो चिर सुन्दरतर !
हो प्रशान्त निरपेक्ष-भाव से पूरी राह चलूँ मन स्थिर !
सिवा तुम्हारे और किसी से क्या माँगूँ मेरे घटवासी ,
जीवन और मृत्यु की सार्थकता पा सकूँ यही वर देना !


दो वरदान श्रमित हर मुख पर तृप्ति भरा उल्लास छलकता
निरउद्विग्न हृदय से ममता ,मोह ,छोह न्योछावर कर दो !
अंतर्यामी ,विनती का यह सहज भाव स्वीकार करो तुम
उसके बदले चाहे मेरी झोली अनुतापों से भर दो
मेरे रोम-रोम में बसनेवाले मेरे चिर-विश्वासी,
हर अँधियारा पार कर सकूँ मुझको परम दीप्त स्वर देना !