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यात्रा / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

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पुरुष एक दिन तुम
काठ की हांडी बन
आग पर चढ़ जाना
जान जाओगे जो आग तुम्हें
सर्दी से बचाती है
वही आग उसके तन को
कैसे जलाती है

पुरुष एक दिन तुम
पानी बन जाना
जान जाना वह घर आंगन को
कैसे शीतल रखते है
गागर में सागर कैसे भरती है

पुरुष एक दिन तुम
आकाश बन जाना
और देखना एक काया कैसे
विशाल ह्रदय रखती है
पल्लू में बाँध दुख को
चमकता तारा करती है

पुरुष एक दिन तुम
वायु बन जाना
जान जाना
कैसे वह कचरा बुहारती है
और देखना
वो सबकी साँस कैसे बनती है

पुरुष एक दिन तुम
पृथ्वी बन जाना
जान जाना कैसे वो
बोझ अपनी पीठ पर रखती है
और
सूरज तुम तक पहुँचे
इसलिए आराम से धुरी पर घूमती है

पुरुष एक दिन तुम
बाती बन जाना
जान जाना
कि बाती कैसे जलती है
प्रकाश कैसे जनती है

पुरुष एक दिन तुम
माँ बन जाना
जान जाना
कि कैसे एक स्त्री
स्वम् के जन्म से पहले ही
गर्भनाल से
अजन्मे को जोड़ती है
पिता बन
उस स्वप्न को पोषित करती है

पुरुष एक दिन तुम
नारी बन जाना
सहयात्री के साथ
यात्रा पर निकल जाना
और उसको बताना
कैसे वह तुम तक आती है
और
कैसे तुम उस तक
पहुँचने में प्रयासरत हो!