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यादां रो अड़ावो / कृष्ण वृहस्पति

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बरसां सूं
काळजै रो अेक कूणों
छोड़ दियो
थारै नांव माथै अड़ावो
पण तूं फेरूं ई
उग्यावै रोज म्हारै मांय।
लीला मियां फूल
पीळै पत्तां री कीं बे'लां
धोळा-धोळा बूंटा
अर अेक
जामनी रंगों पेड़
जित्ती बर काटूं
बित्ती बर ई उग्यावै
आख्यां रै जंगल मांय।

महरबानी कर
अब तो उगणो बंद करदे
ओ खेत भी अब
अडाणै पड़यों है
म्हारी सांसां री अैवज
अर म्है थकग्यो हूं
यादा रो ब्याज भरतो-भरतो।