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यादें-2 / सुधा गुप्ता


23
स्मृति बुनती
दु:खों के करघे में
पीड़ा का थान ।
24
सूखता कण्ठ
मधु स्मृतियाँ जैसे
दो घूँट पानी ।
25
पुरवा आई
फरफराए पत्ते
भीगी यादों के ।
26
किसकी याद
सिसक रही रात
हिचकियाँ ले ।
27
शैशव- स्मृति
कनक -चम्पा खिली
महका मन
28
थिरक रही
खुशनुमा यादों की
ये तितलियाँ ।
29
स्मृति खोलतीं
तहाकर सँजोए
थान के थान ।
30
खोया बसेरा
करते रतजगे
यादों के राही ।
31
किताबों दबे
 मिलते मोर-पंख
भोले विश्वास ।
32
जेबों में भरे
सीपियाँ, कौड़ी, कंचे
भोला शैशव ।
33
रात ढूँढ़ती
चाँद में बैठी नानी
काते थी चर्खा
34
चैत की हवा
उड़ाए वन-गन्ध
भूली-सी स्मृति ।
35
कूकी कोयल
चीरा -सा लगा गई
टपका लहू ।
36
चिनार-वन
फिर से लगी आग
जी हुआ ख़ाक
37
पपीहा दिन
और चकवी रातें
काटे न कटें ।
38
देखा जो तारा
माँ की लौंग का हीरा
कौंध मारता ।
39
पूनो की रात
बटोर लाई किस्से
आँचल भर ।
40
बरसों बाद
घघरू-सी छनकी
तुम्हारी याद ।
41
गुड्डो की शादी
‘घर’ ‘घर’ का खेल
मिट्टी पक्वान्न
42
गुड्डो की चुन्नी
गोटा टँकवाने को
‘दी’ को मनाना ।
43
भटक गए
पौन सदी पुरानी
गली न लौटे ।
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