Last modified on 6 नवम्बर 2018, at 18:57

यादों की तस्वीरे नम हैं / शीतल वाजपेयी

यादों की तस्वीरें नम हैं।
 
चले बाँह में बाँहें डाले
लेकर अपने साथ उजाले
हर मंज़िल आसान लगी थी
फूलों से लगते थे छाले
तुम बिन है सावन आँखों में
मन में पतझर का मौसम है।
 
दर्द कचोट रहा है मन को
तरस रहा है आलिंगन को
सूनापन केवल सूनापन
भेद रहा मन के आंगन को
पलकों पर छाई जो बूँदें
कैसे मैं कह दूँ शबनम हैं
 
यूँ तो हरा भरा घर मेरा
पर तुमने जबसे मुँह फेरा
केवल मेरे ही कमरे में
तनहाई ने डाला डेरा
यादों ने ही दर्द दिये हैं
यादें ही उनका मरहम हैं