Last modified on 1 जुलाई 2011, at 02:59

यादों के समन्दर में नज़र डूब रही है / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:59, 1 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


यादों के समन्दर में नज़र डूब रही है
फिर प्यार की लहर में नज़र डूब रही है

मिलता नहीं है आपसे तिनके का सहारा
दिल फँस गया भँवर में, नज़र डूब रही है

देखा किये हैं हमको सदा दूर ही से आप
अब आइये भी घर में, नज़र डूब रही है

सब हाथ मल रहे हैं खड़े और ज़िन्दगी
उलझाके हर नज़र में नज़र, डूब रही है

मन में बसी है और ही ख़ुशबू कोई, 'गुलाब'!
ऐसे तो बाग़ भर में नज़र डूब रही है