गया जो बीत लम्हा प्यार का वह याद आता है।
जेह्न में आज भी चेहरा वह अक्सर झिलमिलाता है॥
मोहब्बत में अलग दो जिस्म पर जाँ एक होते हैं-
समा का ताप परवाने के तन को भी जलाता है।
हमारे तन जवाँ होते मगर ये दिल नहीं होता-
बड़ी नादानियाँ करता, हमेशा टूट जाता है।
अभी भी है बची मासूमियत मेरी निगाहों में-
किसी को देखकर हँसता मेरा दिल मुस्कुराता है।
बिना मर्जी के उसकी एक पत्ता भी नहीं हिलता-
मुकद्दर के घरों में रब सितारों को सजाता है।
हमें सपने दिखाओ मत सियासत, चाँद, मंगल के-
अगर जो पेट हो खाली नहीं कुछ भी सुहाता है।
कदम जिसने बढ़ाए थे मेरी उँगली पकड़कर कल-
वही मेरी समझ पर आज उँगली को उठाता है।