भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद यूँ होश गंवा बैठी है / अब्दुल्लाह 'जावेद'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:15, 7 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अब्दुल्लाह 'जावेद' }} {{KKCatGhazal}} <poem> याद ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद यूँ होश गंवा बैठी है
जिस्म से जान जुदा बैठी है

राह तकना है अबस सो जाओ
धूप दीवार पे आ बैठी है

आशियाने का ख़ुदा ही हाफ़िज़
घात में तेज़ हवा बैठी है

दश्त-ए-गुल-चीं से मुरव्वत कैसी
शाख़ फूलों को गंवा बैठी है

कैसे आए किसी गुलशन में बहार
दस्त में आबला-पा बैठी है

शहर आसीब-ज़दा लगता है
कूचे कूचे में बला बैठी है

चार कमरों के मकाँ में अपने
इक पछल-पाई भी आ बैठी है

शाएरी पेट की ख़ातिर ‘जावेद’
बीच बाज़ार के आ बैठी है