Last modified on 29 जून 2013, at 18:09

याद / फ़ाज़िल जमीली

तुम हँसती हो,
जैसे सावन गाता है मल्हार

तुम रोती हो,
जैसे बारिश, वो भी मूसलाधार

तुम चलती हो,
सुबह सवेरे जैसे चले हवा

तुम रुकती हो,
माँग रहा हो जैसे कोई दुआ

तुम सोती हो,
टूट रही हो जैसे कोई अँगड़ाई

मैंने जितने मौसम देखे,
याद तुम्हारी आई ।