Last modified on 27 अक्टूबर 2015, at 02:50

यास में भीगी महानगरों की तलछट के सिवा / ज़ाहिद अबरोल


यास में भीगी महानगरों की तलछट के सिवा
शहर में रक्खा ही क्या है चिपचिपाहट के सिवा

ब्याह तो लाए दुलहन आज़ाद हिन्दोस्तान की
हाथ कुछ आया न ख़ुदग़रज़ी के घूंघट के सिवा

मैं नये अंदाज़ से वाकिफ़ हूं लेकिन शाइरी
और भी कुछ है फ़क़त लफ़्ज़ों के जमघट के सिवा

कुफ्ऱ इक सालिम ख़ुदाई है ख़ुद अपने आप में
कुछ नहीं है जुस्तजू-ए-ग़ैब झंझट के सिवा

कुछ सुनाई दे न मुझको वक़्त-ए-तख़लीक-ए-सुख़न
नर्मर्रौ एहसास की हल्की सी आहट के सिवा

शे'र में “ज़ाहिद” न हो आहंग तो कुछ यूं लगे
ज़िक्र कोई गांव का जैसे हो पनघट के सिवा

शब्दार्थ
<references/>