या जग मित न देख्यो कोई।
सकल जगत अपने सुख लाग्यो, दुखमें संग न होई॥
दारा-मीत,पूत संबंधी सगरे धनसों लागे।
जबहीं निरधन देख्यौ नरकों संग छाड़ि सब भागे॥
कहा कहूँ या मन बौरेकौं, इनसों नेह लगाया।
दीनानाथ सकल भय भंजन, जस ताको बिसराया॥
स्वान-पूँछ ज्यों भयो न सूधो, बहुत जतन मैं कीन्हौ।
नानक लाज बिरदकी राखौ नाम तिहारो लीन्हौ॥