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या दुख पावै थारी नार सति हो , हो रही सै मेरी बुरी गति हो / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल

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या दुख पावै थारी नार सती हो, हो रही सै मेरी बुरी गति हो,
लेज्या सै मैनै सिंधपति हो, दुखिया का के जोर सै ।। टेक ।।

तज दिये महल अटारी सब मैं, सेवा करुं आपकी अब मैं,
नभ में नगारि जब गरजै, सुण दादुर का हिया लरजै,
बोली सरै चोट कै दरजै, कित इंद्र कित मोर सै।।

कमल का प्रेमी होत ब्रहंग, करै नहीं मैले का संग,
पतंग प्रेमी प्रेम निभाज्या, देख रोशनी प्राण गंवाज्या,
निरख मंयक अनल खाज्या, कहां चंदा कहां चकोर सै।।

तकदीर जली या ढलगी, काया रंज फिकर में जलगी,
रलगी मणि फणि सिर पटक रही, ज्यों जल बिन मछली भटक रही,
नाव निधि मै अटक रही, या थारे हाथ मै डोर सै।।

शंकरदास खा रहे गम, केशोराम पास रहे हम,
सम दम तप विग्यान तितक्षा, दास जान प्रभु करैंगे रक्षा,
कुंदनलाल गुरु दीं शिक्षा, बिना ग्यान मनुष्य जिसा ढोर सै।।