Last modified on 19 दिसम्बर 2007, at 21:46

या देवि! / वीरेन डंगवाल

माथे पर एक आँख लम्बवत
उसके भी ऊपर मुकुट
बहुत सारे हाथ
मगर दीखते दो ही :
एक में टपकता मुंड।
दुसरे में टपटपाता खड्ग।
शेर नीचे खड़ा है।
दांत दिखाता, मगर सीधा - सादा।
बगल में नदी बह रही लहरदार।
पहाड़ क्या हैं, रामलीला का पर्दा हैं।
माता, मैं उस चित्रकार को प्रणाम करता हूँ
जिस ने तेरी यह धजा बनाई।