Last modified on 11 अप्रैल 2012, at 17:08

या देवि ! / वीरेन डंगवाल

माथे पर एक आँख लम्बवत
उसके भी ऊपर मुकुट
बहुत सारे हाथ
मगर दीखते हैं दो ही :
एक में टपकता मुंड ।
दूसरे में टपटपाता खड्ग ।
शेर नीचे खड़ा है ।
दाँत दिखाता मगर सीधा-सादा ।
बग़ल में नदी बह रही लहरदार ।
पहाड़ क्या हैं, रामलीला का पर्दा हैं ।
माता, मैं उस चित्रकार को प्रणाम करता हूँ
जिसने तेरी यह धजा बनाई ।