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युगांतर / गोपाल सिंह नेपाली

अरे युगांतर, आ जल्दी अब खोल, खोल मेरा बंधन
बंधा हुआ इन जंजीरों से तड़प रहा कब से जीवन
देख, कटी पाँखें कैंची से उड़ सकता न जरा भी मन
भरा कान, पाँव है लंगड़ा, अँधा बना हुआ लोचन
ले जा यह तन ऐसा जीवन, बदले में दे जा यौवन
देजा उस युग का मेरा मन, बदले में लेजा सब धन
आजा ला दे कण-कण में अब फ़िर से ऐसा परिवर्तन
मरता जहाँ आज यह जीवन वहाँ करे यौवन नर्तन