युग-युग का इतिहास लिख रही,
पल भर की पहचान तुम्हारी।
मिलने को हम सब मिलते हैं
पर तुम जैसे कब मिलते हैं?
सब कोई तो नहीं धरा पर
परिचित होने के अधिकारी।
युग-युग का इतिहास लिख रहीकृ
दोनों एक लोक के प्राणी
मेरी आग तुम्हारा पानी,
मेरी व्यथा बता देती है
इसीलिए मुस्कान तुम्हारी।
युग-युग का इतिहास लिख रही...
यौवन के अम्बर की आँधी
तुमने दो साँसों में बाँधी,
ओ मेरे अकलंक देवता
तेरे संयम की बलिहारी।
युग-युग का इतिहास लिख रही...