भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युद्ध के समय में आस्था / सॉनेट मंडल / तुषार धवल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सॉनेट मंडल |अनुवादक=तुषार धवल |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्मी का एक मौसम युद्ध करता है भीतर
और आँसू सूख जाते हैं
हारे हुए सैनिक निर्वासित
ख़ून के साम्राज्य से

घायल कविता रोज़ाना की सड़क के नुक्कड़ों पर
मृत्यु का उपहास करती है
जैसे जूते की हील से यूँ ही कुचली जाने के बाद भी
अधबुझी सिगरेट से
धुआँ निकलता रहता है बिना रुके
रहस्य की छाया में मरते सपने
भाग्य के आदेशों को धता बताते हैं

क्रूर मिसाइलों से घिर कर
बहती उदासियाँ
जंग खाए झरोखों से सिर टकराती हैं

स्मृति और आस्था की पैनी जकड़
जीवितों में उम्मीद जगाती है
और अचानक हुए विस्फोट की हैरत
मुखौटे झाड़ देती है —

सियारों के रति-रोदन और
परागों से जगी उत्तेजना के बीच

यह हवा सूँघ लेती है ज़हर
और शून्य, अनजान
फिर भी, हम साँस लेते हैं, गहरी आस्था में
कि हम प्रेम की उपज हैं
और किसी गर्माहट में दफना दिए जाएँगे।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : तुषार धवल