भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युध्द / सरिता महाबलेश्वर सैल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:46, 10 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरिता महाबलेश्वर सैल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितने युद्धों की बनूँ मैं साक्षी
हर क़दम की दूरी पर
नींव पड़ती नए युद्ध की
समेटने का क्रम नाकाफी
विस्थापन का विस्तार
उजाड का फैलाव
होता जा रहा अनंत
न आप, न मैं
कदाचित कभी न गुज़रेंगे
युध्द की इति के उत्सव से
यह फसल
आयुधों की लहलहाती
पहुँचाएगी हमें
शायद
सृष्टि के पतझड़ तक
कैसा यह
विनाश का ये खेल ...