Last modified on 23 अगस्त 2010, at 12:40

यूँ निकला सूरज / अशोक लव

Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:40, 23 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान / अशोक …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


रात की काली चादर उतारकर
भागती भोर
सूरज से जा टकराई
बिखर गए सूरज के हाथों के रंग

छितरा गए आकाश पर
पर्वतों पर, झरनों पर नदी पर
नदी की लहेरों पर
धरती के वस्त्र पर, रंग

छू न सका सूरज भोर को
डांट न सका सूरज भोर को
और
आकाश पर निकल आया