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यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये / सलीम रज़ा रीवा
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यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये!
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये!!
आंगन मे खून कि न बहे नद्दियाँ कभी!
अपने हि घर मे तीर ना तलवार बाँटिये!!
रहने भी दीजे गुंचाओ गुल को इसी तरह!
गुलशन हरा भरा है ना श्रंगार बाँटिये!!
हर धर्म के गुलो से महकता है ये चमन
खंजर चला के आप न गुलज़ार बाँटिये!!
जब भी मिलें किसी से तो दिल खोलकर मिलें!
छोटी सी ज़िन्दगी में ना तकरार बाटिये!!
दुनिया से दुश्मनी को मिटाने के वास्ते!
लोगो मे भाई चारे का अख़बार बाँटिये!!
इंसानियत का है ये तक़ाज़ा की ऐ "रज़ा"
ता उम्र इस ज़माने में बस प्यार बाँटिये!!