यूँ ही एक छोटी-सी बात पे
ताल्लुकात पुराने बिगड़ गये
मुद्दा था कि सही "क्या" है
वो सही "कौन" पर उलझ गये
ज़िंदगी के अंजान सफ़र में
हम कहाँ से कहाँ पहुँच गये
भीड़ तो ख़ूब इकट्ठा कर ली
मगर ख़ुद तनहा ही रह गये
उनकी अकसर हर ख़ता हम
नज़र अंदाज़ करते गये
उन्हें ये कमजो़री लगी
हम रिश्ते निभाते रह गये
देने वाले ने तो हमें ख़ूब दिया
पर कमी हम ढूँढते ही रह गये
फूलों के बाग़ में रह कर
काँटे ही ढूँढते रह गये
हरदम जो अपने साथ था
उसको तलाशते रह गये
कस्तूरी मृग की तरह
बाहर ही खोजते रह गये