Last modified on 26 अगस्त 2013, at 13:43

ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें / माखनलाल चतुर्वेदी

ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें
तेरा चौड़ा छाता
रे जन-गण के भ्राता
शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते
भू-स्वामी, निर्माता !
कीच, धूल, गन्दगी बदन पर
लेकर ओ मेहनतकश!
गाता फिरे विश्व में भारत
तेरा ही नव-श्रम-यश !
तेरी एक मुस्कराहट पर
वीर पीढ़ियाँ फूलें ।
ये अनाज की पूलें
तेरे काँधें झूलें !
इन भुजदंडों पर अर्पित
सौ-सौ युग, सौ-सौ हिमगिरी
सौ-सौ भागीरथी निछावर
तेरे कोटि-कोटि शिर !
ये उगी बिन उगी फ़सलें
तेरी प्राण कहानी
हर रोटी ने, रक्त बूँद ने
तेरी छवि पहचानी !
वायु तुम्हारी उज्ज्वल गाथा
सूर्य तुम्हारा रथ है,
बीहड़ काँटों भरा कीचमय
एक तुम्हारा पथ है ।
यह शासन, यह कला, तपस्या
तुझे कभी मत भूलें ।
ये अनाज की पूलें
तेरे काँधें झूलें !