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<Poem>
ये गर्म रेत ये सहरा <ref>जंगल, मैदान, रेगिस्तान</ref> निभा के चलना हैसफ़र तवील तावील<ref>स्वप्न फ़ल के अनुसार</ref> है पानी बचा के चलना है
बस इस ख़याल से घबरा के छँट गए सब लोग
वो आए और ज़मीं रौंद कर चले भी गए
हमें भी अपना खसारा <ref>हानि, क्षति, नुक़सान</ref> भुला के चलना है
कुछ ऐसे फ़र्ज़ भी ज़िम्मे हैं ज़िम्मेदारों पर
जिन्हें हमारे दिलों को दुखा के चलना है
शनासा <ref>परिचित, जानकार, वाक़िफ़</ref> ज़हनों पे ताने असर नहीं करते
तू अजनबी है तुझे ज़हर खा के चलना है
वो दीदावर <ref>पारखी, जौहरी</ref> हो के शायर या मसखरा कोई
यहाँ सभी को तमाशा दिखा के चलना है
वो अपने हुस्न की ख़ैरात <ref>दान</ref> देने वाले हैंतमाम जिस्म को कासा <ref>प्याला</ref> बना के चल
</poem>
 
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