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ये जग ही तो धर्मशाल है / शिवदीन राम जोशी

ये जग ही तो धर्मशाल है।
है सराय ये सोच मुसाफिर रहना दो दिन क्या खयाल है।
इक आवे, आवे इक जावे, ना कोई रहा न रहने पावे,
फिर मुटाव मन क्यूं करता है, आज गया कोई जाय काल है।
कायम यहां मुकाम नहीं है सुबह यहां तो शाम कहीं है,
करता क्यो तकरार किसी से दुखदाई ये तो कुचाल है।
हाथ जौर चल यार सभी से चले चलो कर प्यार सभी से,
वरना लोग कहे था खोटा ये तो जुलमी जगत जाल है,
कहे शिवदीन समझ ना आवे क्या कमाल है ! ये कमाल है।