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ये ज़िंदगी जो तेरे दर्द के हिसार में है / सुमन ढींगरा दुग्गल

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ये ज़िंदगी जो तेरे दर्द के हिसार में है
न इख़्तियार से बाहर न इख़्तियार में है
मेरे वजूद पे इक बेख़़ु़ुदी सी तारी है
अजीब कैफ़ तेरे शौक़े इंतज़ार में है