भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये जो रुतबा रुआब वाले हैं / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये जो रुतबा रुआब वाले हैं ।
ज़ुल्म मुर्गा शराब वाले हैं ।

भूख की इनसे बात मत करना,
ये तो काजू-कबाब वाले हैं ।

अस्ल चेहरे छुपाए रखते हैं,
सब के सब ही नकाब वाले हैं ।

रब्त रिश्तों का कैसे समझेंगे,
ये तो ताज़ा गुलाब वाले हैं ।

वक़्त का लफ्ज़-लफ्ज़ पढ़ते जो,
ज़िन्दगी की क़िताब वाले हैं ।

तीरगी उनको छू नहीं सकती,
जो सुगम आफ़ताब वाले हैं ।