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ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा / अबू मोहम्मद सहर

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा
ये दश्त-ए-आरज़ू कोई हम सा न आएगा

चलना नसीब-ए-ज़ीस्त है यूँ ही चले चलो
इस रास्ते में शहर-ए-तमन्ना न आएगा

राह-ए-वफ़ा में क़तरा-ए-शबनम भी है बहुत
जिस से बुझेगी प्यास वो दरिया न आएगा

ख़ुद हो सके तो अपने अंधेरे उजाल लो
अब कोई साहब-ए-यद-ए-बैज़ा न आएगा

ऐ अहल-ए-दिल-ख़ामोश कि ये जा-ए-सब्र है
दुख तो यूँही रहेंगे मसीना न आएगा

गाहे वुफ़ूर-ए-शौक़ तो गाहे हुजूम-ए-यास
सब कुछ तो आएगा हमें जीना न आएगा

बैठे रहें ‘सहर’ यूँही दीवार ओ दर लिए
अपना जिसे कहें कोई ऐसा न आएगा