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ये तो सिस्टम है / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

न्याय का मंदिर
यहाँ पत्ते-पत्ते पर लिखा है
सत्यामेव जयते
पर वास्तविकता कुछ और है
यहाँ तो बस सत्य की
खोज चलती है निरंतर
झूठ के सेलाब में लड़ते हुए सच
कभी थक कर डूब जाता है
यहाँ कुछ ग़लत भी हो जाय
फिर भी वह न्याय समझा जायगा
जब तक फैसला पलटे नहीं
अन्याय करना जांनते ही नहीं
हमारे विव्दान न्यायाधीश।
नीचे से ऊप्रर तक हवा में
गूँज है इसकी।
किसी कों तो राहत
मिल ही जाती है
चाहे कीमत कितनी भी लगे
और दीमक लगा बुढापा
रह जाय मरने के लिए.
न्यालय परिसर में घुसते ही
हवा भारी लगने लगती है
सच और झूठ के संग्राम का धुवां
घूमता है पूरे परिसर में
आशा और निराशा तैरते है वायुमंडल में
मैं देखता हूँ हर शाख पर कौए बैठे हुए
अपनी चोंच पैनी कर रहे है
फर्श पर जोंके रेंगती है।
वजन रख तो कागज़ चलने लगता है
फ़ाइल दौडती है
कोर्ट में तो क्भी कभी
गर्मी इतनी हो जाती है जाड़ों तक में
पसीना छूट जाता है।

तारीख पर तारीख झेलता
आरहा हूँ दो साल से
हर बार यह उम्मीद जगती है
इस बार तो सुनवाई हो ही जायगी
पर न्यायाधीश के सामने कोइ लेजाता नहीं
और अगली तारीख लिख जाती है
वारंट पर मेरे
बड़े जज साहब से फरयाद की
उत्तर मिला अनुसंधान कों
रोका नहीं जासकता
दस साल के बाद
आज में निर्दोष पाया गया हूँ
जेल से तो मुक्ति मुझ कों मिल गई
पर सिस्टम से पूंछता हूँ में
कौन और कैसे लौटाए जासकेगे
मेरी जवानीके सुनहले साल
बच्चे पढ़ नहीं पाए
पत्नी मर गई इलाज हो पाया नहीं
इतनी ज़िन्दगियों कों मिटाने का हक
किसने दे दिया तुमको।