http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AF%E0%A5%87_%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%88_..._/_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8&feed=atom&action=historyये दलितों की बस्ती है ... / सूरजपाल चौहान - अवतरण इतिहास2024-03-29T09:45:15Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AF%E0%A5%87_%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%88_..._/_%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8&diff=268384&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरजपाल चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2019-10-02T12:26:05Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरजपाल चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=सूरजपाल चौहान<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
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{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
बोतल महँगी है तो क्या,<br />
थैली बहुत ही सस्ती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
ब्रह्मा विष्णु इनके घर में,<br />
क़दम-क़दम पर जय श्रीराम ।<br />
रात जगाते शेरोंवाली की …<br />
करते कथा सत्यनाराण..।<br />
पुरखों को जिसने मारा था,<br />
उनकी ही कैसिट बजती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
तू चूहड़ा और मैं चमार हूँ,<br />
ये खटीक और वो कोली ।<br />
एक तो हम कभी हो ना पाए,<br />
बन गई जगह-जगह टोली ।<br />
अपने मुक्तिदाता को भूले,<br />
गैरों की झाँकी सजती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
हर महीने वृन्दावन दौड़े,<br />
माता वैष्णो छह-छह बार ।<br />
गुडगाँवा की जात लगाता, <br />
सोमनाथ को अब तैयार ।<br />
बेटी इसकी चार साल से,<br />
दसवीं में ही पढ़ती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
बेटा बजरँगी दल में है,<br />
बाप बना भगवाधारी<br />
भैया हिन्दू परिषद में है,<br />
बीजेपी में महतारी ।<br />
मन्दिर-मस्जिद में गोली,<br />
इनके कन्धे से चलती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
शुक्रवार को चौंसर बढ़ती,<br />
सोमवार को मुख लहरी ।<br />
विलियम पीती मंगलवार को,<br />
शनिवार को नित ज़हरी ।<br />
नौ दुर्गे में इसी बस्ती में,<br />
घर-घर ढोलक बजती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
नकली बौद्धों की भी सुन लो,<br />
कथनी करनी में अन्तर ।<br />
बात करें हैं बौद्ध धम्म की,<br />
घर में पढ़ें वेद मन्तर ।<br />
बाबा साहेब की तस्वीर लगाते,<br />
इनकी मैया मरती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
औरों के त्यौहार मनाकर,<br />
व्यर्थ ख़ुशी मनाते हैं ।<br />
हत्यारों को ईश मानकर,<br />
गीत उन्हीं के गाते है ।<br />
चौदह अप्रैल को बाबा साहेब की जयन्ती,<br />
याद ना इनको रहती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
डोरीलाल है इसी बस्ती का,<br />
कोटे से अफ़सर बन बैठा।<br />
उसको इनकी क्या चिन्ता अब,<br />
दूजों में घुसकर जा बैठा ।<br />
बेटा पढ़कर शर्माजी, और<br />
बेटी बनी अवस्थी है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
भूल गए अपने पुरखों को,<br />
महामही इन्हें याद नहीं ।<br />
अम्बेडकर, बिरसा , बुद्ध,<br />
वीर ऊदल की याद नहीं ।<br />
झलकारी को ये क्या जानें,<br />
इनकी वह क्या लगती है ।<br />
ये दलितो की बस्ती है ।।<br />
<br />
मैं भी लिखना सीख गया हूँ,<br />
गीत कहानी और कविता ।<br />
इनके दु:ख दर्द की बातें,<br />
मैं भी भला था, कहाँ लिखता ।<br />
कैसे समझाऊँ अपने लोगों को ,<br />
चिन्ता यही खटकती है ।<br />
ये दलितों की बस्ती है।।<br />
</poem></div>अनिल जनविजय