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ये धान के रोपने का सुनहरा मौसम है / चन्द्र

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ये धान के रोपने का सुनहरा मौसम है

इस मौसम में रिमझिम-रिमझिम बारिश होगी
नद-नदी ,वन-जंगल ,पर्वत-अँचल
प्रेमी ,कवि और पागल की तरह मौसमी बंसी बजाएँगे

जो कविता की कजरी आधी-अधूरी रह गई थी पिछले बरस
उसे पर्वतों के बादलों के पेड़ों के झूलों पर झूलते-झूलते
ताल सुर दे, लय छन्द दे, कल-कल निनाद बनाएँगे

हल्की-हल्की धूप भी श्रमिकों को मुरझाएगी
चहूँ दिशि मस्तानी हवाएँ सरसराएगी
भँवरे, मधुमक्खियाँ और तितलियाँ
रँग-बिरँगे खिले,हरी-भरी लताओं से गले मिले,
फूलों की पृथ्वी पर, नृत्य पर नृत्य कर, झूमेंगे, झूमेंगे
चूमेंगे, चूमेंगे सुख-दुख भरे जीवन की इन्द्रधनुषी तरँग को
उत्साह और उमँग से
सिरजेगें, सिरजेगें किलकता हुआ शिशुपन...

मिट्टी का कीचड़ हम मज़दूर-किसान बनेंगे
बच्चे और बच्चियाँ इन्हीं कीचड़ों में ख़ूब खेलेंगे
दूर-दूर से देशी-परदेशी चिरई-चुरूँग आस लगाकर आएँगे

मेरे कृषक भाई, बहिनी नन्ही-नन्ही कुदालियों से आलियाँ छाँटेंगे
पथारों की पगडण्डी की तरह मेड़ बनाएँगे
हल-बैलों-हेंगिंओं से खेतों को मुलायम दही की तरह मह-मह कर
धान रोपने लायक गीली मिट्टी और कीचड़ बनाएँगे
कविता से भी सुन्दर, बहुत सुन्दर-सुन्दर ,पँक्तिबद्ध-पँक्तिबद्ध
क्यारियाँ बनाएँगे

ये धान-रोपनी का सुनहरा मौसम है
इस मौसम में
दिन होगा चाहे रजनी होगी
हाड़-तोड़ की खटनी होगी

पिया गया होगा परदेस मगर
मस्तक पर ओढ़े बदरिला आसमान
चुपचाप धान रोपती उसकी सजनी होगी

बनिहारिन स्त्रियाँ धानों के बित्ता -बित्ता भर के
हरियर-हरिहर बीज
अपने कर्मठ हाथों से उखाड़ेंगीं ,बोएँगी
रसीली, लसीली मिट्टी में
हाथों की उँगलियों को गोद-गोद कर, टप-टप ,टप-टप..
हंस-हंसकर, खिल-खिल कर, मिल-मिल कर
बच्चे बच्चियाँ जवान बूढ़े सब के सब
पँकीली मिट्टी में रोपते जाएँगे, रोपते जाएँगे
गाते हुए धन-रोपनी की लहरदार गीत
जीवन का नव-नव रँग-रूप रोपते जाएँगे

मन सावन-सावन होता जाएगा
चहुँ ओर हरियाली लहराएगी
हम कीचड़ के बच्चे
हमारी मेहनतकश आत्माएँ
कीचड़ में धरती भर नहाएँगी

झींगुर-दादुर खूब मस्ती में मल्हार गाएँगे
जब तक न खिल जाते धानों में धान
जब तक न सफल हो जाता हमारी मेहनत से धरती पर बहा लहू और पसीना और श्रम और प्यार
जब तक न कमल के लह-लह फूल बन जाते
पथारों में रेगिस्तान की तरह समतल, अनन्त श्रम के कीचड़

तब तक हरे-हरे धान के पत्तों को
चुप-चुप कर,
छुप-छुपकर, चुग-चुग कर

ये चिरई-चुरूँग खाएँगे !

कि मिट्टी अपना गुण धर्म निभाएगी
हम मिट्टी के बच्चे नन्हें-नन्हें धान के पौधे
नीले आसमान में फहरेंगे सयान बनकर एक दिन..!