Last modified on 5 जुलाई 2016, at 04:39

ये पहाड़ियाँ / हरीशचन्द्र पाण्डे

(इलाहाबाद से बाँदा जाते समय छोटी-छोटी पहाड़ियों में हो रहे खदान को देखकर)

एक तो यह उद्यम
कि निर्वसन होने से बचा ले जाएँ अपने को
जिसे अन्ततः हार गयीं ये पहाड़ियाँ
और खड़ी हैं नग्न

वसन पूरा अस्तित्व तो नहीं
निर्वसनता के बाद भी तो बचाना होता है बहुत कुछ

ये लदे-फदे मगन लौटते ट्रक वही ले जा रहे हैं क्या
अपने पीछे धूल उड़ाते...