भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये मज़ाक अच्छा हुआ / रामश्याम 'हसीन'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामश्याम 'हसीन' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये मज़ाक अच्छा हुआ
हो गया सोचा हुआ
जो भी था सोचा हुआ
कुछ भी कब वैसा हुआ
ज़िन्दगी की मार का
हर कोई मारा हुआ
लूटने वालो! हूँ मैं
पहले से लूटा हुआ
उनसे माफ़ी माँगकर
मैं नहीं छोटा हुआ