ये मेरे यार ने क्या मुझ से बेवफ़ाई की,
मिले न फिर कभी जिस दिन से आश्नाई की ।
अब उस के इश्क़ ने क्या कम किया था मुझ से सुलूक,
सताया तू ने ख़ुदा हत तिरी ख़ुदाई की ।
मैं तेरे वारी नसीहत न कर मुझे बाजी,
तुझे भी याद है बकवास सब ख़ुदाई की ।
फँसा दिया मुझे ’रंगी’ के दाम में नाहक़,
करे इलाही कटे नाक मेरे दाई की ।