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ये मेरे लफ्ज़ / संतोष श्रीवास्तव

ये मेरी आहों की चिंगारियाँ
पलकों पर सोच की दस्तक
और हर सोच
सपनों से लदी
लगता
मैं अपने सपनों के हाथों
बहुत जल्द मरूंगी
सीने में रड़कती
फाँस के सिवा
कहीं कुछ भी नहीं
जिसे मैं
अपना कह सकूं
मैं सपनों के बोझ तले
पत्ते की तरह काँपती
और तू
जहाँ मेरे मन की गलियाँ खुलती है
ये मेरे लफ्ज़
मुझ तक भी
पहुँच नहीं पाये
मैं खुद के लिए अजनबी
बहुत बड़े अंधेरे से टूटी
अँधेरे का टुकडा