Last modified on 3 अप्रैल 2018, at 21:24

ये शोखियाँ अनोखे पैग़ाम दे रही हैं / रंजना वर्मा

ये शोखियाँ अनोखे पैग़ाम दे रही हैं
मुश्किल बहुत सफ़र को अंजाम दे रही हैं

हम जिन को भुला बैठे बेकार समझ कर
रिश्तों की नर्मियाँ अब वो काम दे रही हैं

सूरज उगा सवेरे मीत जाय जो अँधेरा
रंगीन लालिमा फिर क्यों शाम दे रही है

गुरबत से तो शिक़ायत हमने कभी नहीं की
आँखों को अश्क़ वाला क्यों जाम दे रही हैं

तनहाइयों के मेले हम ने नहीं लगाये
ये बेरुख़ी का हम को इल्ज़ाम दे रही हैं

हर रात चाँदनी है ख्वाबो के ढेर लाती
ला कर उमस हवायें बद नाम दे रही हैं

नदियाँ उमड़ रही हैं सागर लगा मचलने
अब ज्वार का लहर को ये नाम दे रही हैं