भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये सच है कि पाँवों ने बहुत कष्ट उठाए / दुष्यंत कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:21, 5 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार |संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त कुमार }} [[Ca...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये सच है कि पाँवों ने बहुत कष्ट उठाए

पर पाँवों किसी तरह से राहों पे तो आए


हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था

कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए


जैसे किसी बच्चे को खिलोने न मिले हों

फिरता हूँ कई यादों को सीने से लगाए


चट्टानों से पाँवों को बचा कर नहीं चलते

सहमे हुए पाँवों से लिपट जाते हैं साए


यों पहले भी अपना—सा यहाँ कुछ तो नहीं था

अब और नज़ारे हमें लगते हैं पराए.