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"ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा<ref>अपने मित्र के.पी शुंगलु को समर्पित जिन्होंने मतले का विचार दिया</ref>
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मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा 
  
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा<br>
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यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा<br><br>
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मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा  
  
यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं सभी नदियाँ<br>
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ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा<br><br>
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ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते<br>
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तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा<br><br>
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कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा  
  
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है<br>
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कई फ़ाक़े<ref>भोजन न मिलने पर भूखे रहने की स्थिति </ref> बिता कर मर गया जो उसके बारे में
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा<br><br>
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वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा  
  
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यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा<br><br>
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यहाँ पर सिर्फ़ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं<br>
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चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा<br><br>
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कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा
 
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चलो अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें<br>
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कम से कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा<br><br><br>
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फ़ाका = भोजन ना मिलने पर भूखे रहने की स्तिथि ; जलसा = उत्सव<br><br>
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01:38, 28 जून 2011 के समय का अवतरण

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा<ref>अपने मित्र के.पी शुंगलु को समर्पित जिन्होंने मतले का विचार दिया</ref>
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा

कई फ़ाक़े<ref>भोजन न मिलने पर भूखे रहने की स्थिति </ref> बिता कर मर गया जो उसके बारे में
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा<ref>उत्सव</ref> हुआ होगा

चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा

शब्दार्थ
<references/>