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|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
ये सुर्मई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमनाहटें
मिलती हैं मुझको पिछले पहर तेरी आहटें।
चश्मे - सियह तबस्सुमे-पिनहाँ लिये हुये
पौ फूटने से पहले उफ़ुक़ की उदाहटें।
</poem>
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