भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

योगफल / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुख मिला :
उसे हम कह न सके।
दुख हुआ:
उसे हम सह न सके।
संस्पर्श बृहत का उतरा सुरसरि-सा :
हम बह न सके ।
यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित
जीवित भी हम रह न सके।