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रंगोली / विमल राजस्थानी

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जिसने इतनी सुन्दरता दी, वह खुद कितना सुन्दर होगा
जब उसको आँखें निरखेंगी, कैसा वह सुखद प्रहर होगा
इन नीली-पीली-लाल-तित-
लियों में ही तू उलझा-सुलझा
आ, बैठ ध्यान में, रंगो की-
बहुरंगी महफिल में खो जा
जब मुँदी पलक के पिंजरे में ‘रँगसाज’ स्वंय फँस जायेगा
कौशल के किसलय फूटेंगे, जयवान हसीन हुनर होगा
पुलकेगी देह, उमंगों का-
कलरव अंगों में छायेगा
रग-रग में रंग जे होंगे
तू स्वंय ‘शंभु’ बन जायेगा
जायेगा चंचल समय ठहर, यह काल अवाक्, अवश होगा
जब शिरा-शिरा प्रमुदित होगी, जब अंजलि में निर्झर होगा
सभ्यताजनित व्यक्तित्व दमित-
को करो विसर्जित, खोने दो
नाचो, थिरको, गाओ, झूमो
जो भी होता हो, होने दो
नाचो चौराहों, गलियों में निर्झर भर पलकांजलियों मंे
ऊर्जा से भरे स्वंय तुम ही क्या, सारा सचराचर होगा
जग पागल तुम्हें बतायेगा
पत्थर फेंकेगा, ढाहेगा
तू अपना धर्म निबाहे जा
जग अपना धर्म निबाहेगा
तुमको पत्थर में ढाल कभी पत्थर से सिर टकरायेगा
पर तू अनादि होकर अनंत ऊर्जित रवि कोटि प्रखर होगा