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रंग-बिरंगी है ये दुनिया या कोई जादू-टोना है / हरिराज सिंह 'नूर'

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रंग-बिरंगी है ये दुनिया या कोई जादू-टोना है।
आँसू और ग़म इसके अंदर जगमग कोना-कोना है।

जब ये हँसती तो सब हँसते,जब ये रोती, जग रोता,
सब को ये मालूम कहाँ है, व्यर्थ का हँसना-रोना है।

होंठ हिलाने हैं बेमतलब, व्यर्थ की सारी बातें हैं,
आलमे-फ़ानी इस दुनिया में, ख़ुद का बोझा ढोना है।

दरिया जो मिट्टी लाता है, वो अनमोल है सब जानें,
सब को ये मालूम नहीं पर मिट्टी उपजे सोना है।

सारी चीजें अपनी लगतीं, दिखते हैं सब अपने ही,
सब को ये अहसास कहाँ जो पाया है वो खोना है।

इंसां की फ़ितरत है ऐसी सब कुछ अपना समझे ये,
इक दिन तो आँखें मुँदनी हैं, चैन से इसको सोना है।

अपने कर्म किए जाओ तुम, फल की इच्छा मत रक्खो,
गीता का उपदेश यही है, 'नूर' जो होना, होना है।