भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रंग घोला है मैंने / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग घोला है मैंने भले प्यार का
रंग गाढ़ा किया है मगर आपने।

मैं अकेला रहा आप पूरक बने
मैं भ्रमित जब हुआ आप प्रेरक बने,
जिसको देखो वही मुझ में ढूँढे कमी
आप ही एक मेरे प्रशंसक बने।

आप की ओर मैंने उठायी नज़र
अंक में भर लिया है मगर आपने।

मैं पवन जिसमें खुशबू बसी आपकी
मैं वही फूल जिसमें हँसी आपकी,
हर तरफ आप ही आप दिखते मुझे
हर खुशी अब मेरी, है खुशी आपकी।

हाथ बेशक़ बढ़ाया है मैंने प्रथम
मुझको अवसर दिया है मगर आपने।

आपको देख मौसम बदलने लगा
रंग गुलाबी दिशाओं पे चढ़ने लगा,
बात जो आप में वह किसी में नहीं
आप आये कि फागुन महकने लगा।

स्वप्न देखा था मैंने भले प्यार का
स्वप्न पूरा किया है मगर आपने।