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रंग भरी बातें / सोम ठाकुर

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महुए - से महके दिन
मेंहदी - सी रातें
केसर - सी घोल गई
रंग भरी बातें

सुनी जो मिली कही खेतों की राहें
सरसों की पगडंडी , आमों कि छाहें
सुने जो मिले कही मुड़ते गलियारे
लहरों के चित्र -लिखे रेतिया किनारे
ठहर गया मन , ठहरे पाँव भी अजाने
अंग-अंग डोल गई रंग भरी बातें

गीतें रचे धरती, आकाश गुनगुनाए
पूरब ने गाए, पश्चिम ने दुहराए
शाकुन्तल स्वप्न बहे गीत के बहाने
कानो ने जाने, प्राणो ने पहचाने
वंशी के संग -संग जाने कब -कैसे
कंगन को तोल गई रंग भरी बातें

उड़ती है चाहों की अनगिन कंदीलें
नैनों के हंस, रूप - रंगों की झीलें
हार गये बंद द्वार, गंध पवन जीती
हो गये ये बीती घड़ियाँ अनबीती
मन -मन को बाँध गई लौटती विदायें
गाँठ -गाँठ खोल गई रंग भरी बातें