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रंग भूरे तो कुछ के काले हैं / आदर्श गुलसिया

रंग भूरे तो कुछ के काले हैं
आस्तीनों में सांप पाले हैं

नाम बस्ती का सत्य धाम मगर
सब यहाँ झूठ कहने वाले हैं

अम्न कितना है शहर में तेरे
दर ओ दीवार पर हवाले हैं

रोज़ मय की नदी वहाँ खपती
बस जहाँ रोटियों के लाले हैं

है नया मार्केट में यह अखबार
इसमें कितने नए मसाले हैं

तीरगी की बनी है जो सरकार
अब गुलाम इनके सब उजाले हैं

शहर में क्या यतीम हैं सब लोग
अपने से छोटों को जो पाले हैं

बस यही है सफर के सारे सबूत
पांवों में उभरे जो ये छाले हैं

होगा क्या इस सफर का अब 'आदर्श'
राह जन कारवां संभाले हैं