भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रंग में रँग दई / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: घासीराम

रंग में रँग दई बाँह पकरि लई, लाजन मर गई होरी में,
इकली भाज दई होरी में, हुरमत लाज गई होरी में॥ रंग.
चूँदर रंग बोरी होरी में, पिचकारी मारी होरी में,
ह्वैके स्याम निसंक अंक भुज भरि लई होरी में। रंग में.
गाल गुलाल मल्यौ होरी में, मोतिन लर तोरी होरी में,
लोक लाज खूँटी पे कान्हा धर दई होरी में। रंग में.
बरजोरी कीन्ही होरी में, ऐसी बुरी भई होरी में,
‘घासीराम’ पीर सब तन की हर लई होरी में। रंग में.