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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>शताब्दियों से यह हमारे आसमान का रंग है<br />और हमारी नदियों का मन<br />थरथराता है इसी रंग में<br /><br />इसी रंग में डूबे हैं अलसी के सहस्‍ञों फूल<br /><br />यह रंग है उस स्‍याही का<br />जो फैली है बच्‍चों की<br />उंगलियों और कमीजों पर<br />यह रंग है मॉं की साड़ी की किनार का<br />दोस्‍त के अंतर्देशीय का<br />यही रंग है बरसों बाद<br /><br />यह रंग है तुम्‍हारी पसंद<br />तुम्‍हारे मन और सपनों के बहुत निकट यह रंग है<br />और उस दिन भी ठीक यही रंग होगा आसमान का<br />इन्‍तजार की दुर्गम घाटियों को पार करने के बाद <br />जिस दिन तुमसे मिलूंगा<br /><br />इस रंग से जुड़ी हैं<br />प्रिय और अप्रिय यादें<br />अक्‍सर मेरी नींद में टपकता है नीला रक्‍त<br />और चौंककर उठ जाता हूं मैं<br />यही, हॉंहाँ, यही रंग भाई की देह का<br />मृत्‍यु से पहले<br />और सर्प दंश के बाद<br /><br />मैं इसे भूल नहीं सकता<br />कि यह रंग है समय की पीठ पर.<br />पर।<br /poem>
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