Last modified on 1 फ़रवरी 2009, at 08:31

रंजित-सुरेश-धनु शरद-पूर्णिमा उदधि, उषा, विहंग-कलरव / प्रेम नारायण 'पंकिल'

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:31, 1 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल' |संग्रह= }} Category:कविता <poem> रंज...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रंजित-सुरेश-धनु शरद-पूर्णिमा उदधि, उषा, विहंग-कलरव।
मुझको नित आमंत्रित करते वसुधागत तरूण बीज-उदभव।
विस्तीर्ण अवनि अंचल पसार कर विशद व्योम को श्यामलतम।
नक्षत्र-धवल-लिपि में मेरा आह्वान किया करते प्रियतम।
अतिशय मलीन मैं दीन-हीन पर अद्भुत तेरी माया है।
मेरे मन की हृदतंत्री ने प्रिय! तेरा ही स्वर गाया है।
रे! चैन छीनने वाले! आ, बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥88॥