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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=ज़िंदगी ! ए ज़िंदगी ! / फ़राज़;दर्द आशोब / फ़राज़
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आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत<ref>प्रेम के अभिमानगर्व</ref> का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम <ref>प्रेम व्यवहार</ref> न सही फिर भी कभी तो रस्म-ओरस्मे-रहे-दुनिया <ref>सांसारिक शिष्टाचार</ref> ही निभाने के लिए आ
किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ
इक उम्र माना के मुहब्बतका छुपाना है मुहब्बत चुपके से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम ऐ राहत-ऐ-जाँ मुझको रुलाने किसी रोज़ जताने के लिए आ
जैसे तुम्हे आते हैं न आने के बहानेवैसे ही किसी रोज न जाने के लिए  इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया<ref>रोने के स्वाद</ref> से भी महरूम <ref>वंचित</ref>ऐ राहत-ऐ-जाँ<ref>प्राणाधार</ref> मुझको रुलाने के लिए आ  अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम <ref>किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन</ref> को तुझ से है उम्मीदें ये आखिरी शम्मएँ शम्अ भी बुझाने के लिए आ
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</poem>
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