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किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ
 
माना के मुहब्बतका छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
 
जैसे तुम्हे आते हैं न आने के बहाने
वैसे ही किसी रोज न जाने के लिए
इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया<ref>रोने के स्वाद</ref> से भी महरूम <ref>वंचित
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