भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रईसज़ादे / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:12, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिछले कुछ वर्षों में
जब से कि अर्राकर गिरा है उनके घरों में पैसा
वे पूरी तरह जवान हो चुके हैंे-
इतने कि उनके चलने से धरा हिलती है
कि घबराता है उनके उड़ने से आसमान

उनके पैर कभी नहीं होते ज़मीन पर
उन्हें तेज़ रफ़्तार वाहनों में दौड़ना पसंद है
उन्हें पसंद है हर बाधा या लोगों को कुचलते चले जाना
वे तेज़ संगीत के शोर में रात भर नाचना पसंद करते हैं
और हर समय चाहते हैं
मनपसंद तेज़-तर्रार लड़कियों का साथ

हमारे वक़्त के रईसजादे
नफ़रत करते हैं धीमी चीज़ों या लोगों से
उनकी ओर आता हुआ उनका सुख
जब कभी धीमा पड़ता है थोड़ा भी
वे गोली मारकर ढेर कर देते हैं उसे तेज़ी से।